Sunday 13 May 2018

भारत की संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने में डॉ. मन्तराम का योगदान सराहनीय : अमर अग्रवाल



बिलासपुर. भारत की संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने में डॉ. मन्तराम का योगदान सराहनीय है. उक्त उदगार डॉ. मन्तराम यादव के अभिनन्दन समारोह एवं अभिनन्दन ग्रंथ के विमोचन के अवसर पर मुख्य अतिथि की आसंदी श्री अमर अग्रवाल— नगरीय प्रशासन मंत्री, छग शासन ने व्यक्त ​की. इस अवसर पर उन्होंने डॉ. मन्तराम से मेरा संबंध तब से है जब मैं युवा मोर्चा था. शहरी परिवेश में तो कोई भी कार्यक्रम आयोजित करना ज्यादा कठिन नहीं है किन्तु दूरस्थअंचल के ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी कार्यक्रम का आयोजन करना बहुत कठिन है वो भी लोकसंस्कृति, लोकपरम्परा, लोकगीत, लोकनृत्य जैसे हमारे देश की संस्कृति के लिए करना जिसे डॉ.मन्तराम यादव ने बखूबी से निभाया और निरंतर 26 वर्षों से करते चले आ रहा है. उनका अभिनंदन तो इससे पहले हो जाना चाहिए था. आज डॉ. मन्तराम यादव 67 वर्ष के हो गए है मैं भगवान से आशा करता हू कि जब मैं 67 वर्ष को होउ तो इससे वृहद कार्यक्रम डॉ. मन्तराम यादव जी के जन्मदिन के अवसर पर करें. डॉ. मन्तराम यादव दीर्घायु हो, शतायु हो एवं हमेशा स्वस्थ रहे ऐसी कामना मैं इस अवसर पर करता हूं. कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. विनय कुमार पाठक ने की. विशिष्ट अतिथि के रुप में ​श्री किशोर राय—महापौर, नगर पालिक निगम बिलासपुर, श्री मिलिंद चहान्दे जनसंपर्क अधिकारी एसईसीएल, डॉ. आर.पी. दुबे कुलपति डॉ. सीवी रामन विवि कोटा थे.अभिनंदन ग्रंथ के संपादक श्री के.के. भटट एवं संयोजक श्री अश्विनी कुमार आलोक थे. कार्यक्रम का संचालन श्री हरबंश शुक्ला तथा आभार प्रदर्शन श्री तेरस यादव ने किया. आयोजन समिति में सर्वश्री राधेश्याम यादव, मूरित राम यादव, डॉ. रेखा पालेश्वर, प्रेमलाल यादव, इंजि ए.के. यदु, मनहरण लाल साहू, इंजि. रामलाल यादव, तेरस यादव, सुरेन्द्र सिंह ठाकुर,अभिनय यादव, सनत तिवारी, सहेत्तरुलाल यादव, देवफल यादव, नंदकुमार यादव, एम.एल. यादव, वीरेन्द्र यादव, शरद यादव, चंद्रकुमार तिवारी, श्रीमती वसन्ती वर्मा, श्रीमती किरण यादव, श्रीमती सविता यादव, श्रीमती पूजा यादव, श्रीमती परमेश्वरी यादव, श्रीमती सरिता यादव थे. इस अवसर पर रउताही कला वार्षिकी स्मारिका के द्वितीय खण्ड का विमोचन भी किया गया.

Sunday 28 May 2017

 लोकगीत
लोकगीत वस्तुत: एक शब्द है,लेकिन अपने में दो भावों को समेटे हुए है, लोक और गीत. दोनो एक दूसरे में संशलिष्ट....एक दूसरे में संपूरक. लोकगीत पर चर्चा करने से पहले हम लोक और गीत पर भी संक्षिप्त में चर्चा करते चलें, तो उत्तम होगा.
लोक शब्द संस्कृत के  ‘लोकधुन’ धातु में  ‘घ’ प्रत्यय लगाकर बना है, जिसका अर्थ है-देखने वाला. साधारण जन के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में अनेक स्थानों पर हुआ है.
डा. हजारीप्रसाद द्विवेदीजी ने  ‘लोक’ शब्द का अर्थ जनपद या ग्राम से न लेकर नगरों व गांव में फैली उस समूची जनता से लिया है।  परिष्कृत रुचिसंपन्न तथा सुसंस्कृत समझे जाने वाले लोगों की अपेक्षा अधिक सरल और अकृत्रिम जीवन की अभ्यस्त होती है.
डा. वासुदेवशरण अग्रवाल के शब्दों में  ‘लोक ’ हमारे जीवन का महासमुद्र है, जिसमें भूत, भविष्य और वतर्मान संचित है. आर्वाचीन मानव के लिए लोक सर्वोच्च प्रजापति है.
उपरोक्त कथन के अनुसार लोक विश्वव्यापी है. इसे छोटा करके नहीं देखा जा सकता. तभी तो हमारे यहाँ लोकरंग, लोकजीवन, लोकप्रसंग, लोकसंस्कृति,, लोककला, लोककथा, लोकगाथा, लोकगीत, लोकधारणा, लोकसाहित्य, लोकतत्व, लोकजागरण, लोकरा,,लोकराग, लोकमूल्य, लोकचित्र, लोकावस्था, लोकचित्त, लोकनाटक, लोकसमुदाय आदि विस्तार लेते हुए दिखाई देता है. 
डॉ कुंजबिहारी दास ने लोकगीतों की परिभाषा देते हुए कहा है,  ‘लोकसंगीत उन लोगों के जीवन की अनायास प्रवाहात्मक अभिव्यक्ति है, जो सुसंस्कृत तथा सुसभ्य प्रभावों से बाहर कम या अधिक आदिम अवस्था में निवास करते हैं। यह साहित्य प्राय: मौखिक होता है और परम्परागत रूप से चला आ रहा है।’
 ‘युगतेवर’ पत्रिका के संपादक श्री कमलनयन पांडेय लोकगीत विधा को लेकर कहते हैं— ‘लोकगीत ’ मानवीय वृत्तियों का अक्षय भंडार है. लोक संस्कृति का अमरकोष है. चरणबद्ध मानव-विकास का सजग साक्षी है. सामूहिकता का सहज गान है. करुणा का लहलहाता महासागर है. मानवीय-संवेगों का दस्तावेज है. इतिहासवेत्ता मानव-विकास की कहानी के किसी कोने को दर्ज करने से चूक सकता है, पर  ‘लोक’ की पारखी नजर से कुछ भी नहीं चूकता. इसीलिए मेरा मानना है कि परम्परा की पड़ताल का सबसे बड़ा धरातल हमारे  ‘लोकगीत’ हैं, जिसमें हर कालखण्ड, हर भूखण्ड के मानव-समुदाय की सांस-सांस टांकी गई है. रेशा-रेशा उपस्थित है. मन के कोने-अंतरे के भाव-प्रभाव दर्ज हैं. सचेत इतिहासवेत्ताओं का मानना है कि इतिहास का यथार्थ लेखन सि$र्फ गजेटियरों और रियासतों के दस्तावेजों को आधार मानकर नहीं लिखा जा सकता. यथार्थ इतिहास के लिए हमें लोक-सृजन की विविध विधाओं को भी आधार बनाना पड़ेगा.
उपरोक्त विद्वानों के मतों के आधार पर कहा जा सकता है  ‘लोकगीत’ लोक के गीत हैं,जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज अपनाता है. सामान्यत: लोक में प्रचलित, लोक द्वारा रचित एवं लोक के लिए लिखे गए गीतों को  ‘लोकगीत’ कहा जा सकता है. लोकगीतों का रचनाकार अपने व्यक्तित्व को लोक को समर्पित कर देता है. इनमें शास्त्रीय नियमों की विशेष परवाह न करके सामान्य लोकव्यवहार के उपयोग में लाने के लिए मानव अपने आनन्द की तरंग में जो छन्दोबद्ध वाणी सहज उद्भूत करता है, वही  ‘लोकगीत’ है.
लोकगीत को तीन अलग-अलग श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है- लोक में प्रचलित गीत(२) लोक-रचित गीत-(३) लोक-विषयक गीत. यहाँ यह बात स्मरण में जरुर रखी जानी चाहिए कि लोकगीत भारत की सभी भाषाओं मे लिखे गए है. जिन्हें आज भी गाया जाता है. इनमे से कई लोकगीत या तो विस्मृत कर दिए गए, या $िफर इस बदलते परिवेश में जिन्हें गाना, शान के विरुद्ध माना जाने लगा है और उन्हें तिरस्कृत किया जा रहा है जबकि इस अनमोल खजाने को संरक्षित करने की जरुरत है.. इन्हीं बातों को लेकर देवेन्द्र सत्यार्थी ने उन्नीस बरस की अवस्था में कालेज की पढाई को अधबीच में छोड़ा और घर से निकल पड़े?.. इस घुम्मकड़ विद्वान ने गांवों की धूलभरी पगडंडियों पर भटकते हुए, धरती के भीतर से फूटे किस्म-किस्म के रंगों और भाव-भूमियों के लोकगीतों को देखा,महसूस किया और उन्हें अपनी कापी में उतार लिया. जब भी उन्हें कोई अच्छा सा लोकगीत सुनने को मिलता, लेकिन उसका अर्थ समझ में नहीं आता, या फिर भाषा की कठिनाई महसूस करते तो पूछ-पूछ कर उसका अर्थ भी लिख लिया करते थे. इस तरह उन्होंने काल-कवलित होते लोकगीतों का संरक्षण किया. जब भी लोकगीतों की बात होगी, इस महामना को विस्मृत नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने लोकगीतों के संरक्षण के लिए पहला कदम बढ़ाया था.
कजरी, सोहर, चैती संस्कारगीत, पर्वगीत, ऋतुगीत, आदि लोकगीतों की प्रसिद्ध शैलियाँ मानी गई हैं। इनके अलावा संस्कार गीत= (बालक-बालिका के जन्मोत्सव, मुण्डन,जनेऊ, विवाह आदि अवसरों पर गाए जाने वाले गीत)गाथागीत- (विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित विविध लोकगाथाओं पर आधारित गीत. इसमें आल्हा, ठोला, भरथरी, नरसी भगत, घन्नैया को शामिल किया जा सकता है)
पर्वगीत=(राज्य के विशेष पर्वों एवं त्योहारों पर गाए जाने वाले गीत) को भी शामिल किया जा सकता है.ऋतुगीत=(कजरी, बारहमासा, चैता, हिंडोला आदि)
.कजरी= हमारे यहाँ वर्षा ऋतु का अपना विशिष्ट स्थान है. आषाढ से लेकर भादों तक प्रकृति के लहराते हरित अंचल की छटा एक ओर हमें मंत्रमुग्ध कर देती है, वहीं दूसरी ओर हमारे अंतर्मन में एक संगीतमय गुदगुदी पैदा कर एक सुखद व्यथा को भी उत्पन्न करती है और यही सुखद पीडा जन्म देती है संगीत को. वर्षा की रिमझिम $फुहारों के साथ कजरी के बोल सर्वत्र गूँज उठते हैं माटी की सोंधी सुगंध के साथ. झूले पर पेंगें मारती यौवनाएं हो या घर की गृहनियां हर किसी के अंतर्मन से कजरी के बोल $फूट पडते  हैं. बूढा हो या फिर जवान हर कोई कजरी की लय अमें खोकर रह जाता है। होंठ थिरक उठते हंै और बोल स्वत: $फूट पड़ते हैं- कइसे खेले जयबू सावन में कजरिया, बदरिया घिरी आईस सजनी।
वतर्मान हिन्दीभाषी क्षेत्र प्राचीन भारत का ‘मध्य देश’ है इस क्षेत्र में बोली जाने वाली बोलियों को भाषा वैज्ञानिकों ने चार भागों में विभक्त किया है.  ‘पश्चिमी हिन्दी’ जिसके अंतरगत खडी बोली, ब्रज, कन्नौजी, राजस्थानी तथा बुंदेलखडी भाषाएं आती हैं. अवधी, बघेली, तथा छत्तीसगढी मध्य की भाषाएं हैं और इसके पूर्व में बिहारी भाषा समुदाय की भोजपुरी, मैथिली,तथा मगही है. उत्तर में कुमाऊँनी,भाषा है जो नैनीताल, अल्मोडा,टेहरी-गढवाल, पिथौरागढ, चमौली, तथा उत्तर काशी में बोली जाती है. बोलियों में भी अनेक उपबोलियां हैं,जिनमें लोकगीत गाए जाते हैं.
लोकगीत चाहे जहाँ के हों वे प्राचीन परम्पराओं, रीतिरिवाजों एवं धार्मिक तथा सामाजिक जीवन को अपने में समेटे हुए हैं.इनमें भाषा अथवा बोली की अनेकताएं भले ही हों पर भावों की एकता एवं उसे व्यक्त करने तथा पात्रों का चयन लगभग एक जैसा ही होता है.
डोगरी लोकगीत= चन्न म्हाडा चढ़ेया ते बैरिया दे ओहले बैर पटाओ म्हाडा चन्न मुहा बोले मिलना जरुर मेरी जान ( मेरा चांद बेर के दराख्त की ओट में चढा है. दरख्त कटवा दो ताकि मेरा चांद मुंह से बोल सके.मेरी जान मिलना तो जरुर है)
पंजाबी लोकगीत=निक्की निक्की बूँदी निक्कियाँ मीं वरे, वे वीरा नदियाँ किनारे घोडी घारु चरे, वे वीरा दादी सुहागण बूहे ढोल धरे, वे वीरा भूआ सुहागण सोहणें नाऊ धरे(दूल्हे का घोडी पर सवार होकर विवाह रचाने जाते समय गाया जाता है)
कश्मीर=आव बहार वलो बुलबुलो/सोन वलो बरवों शादी/द्राव कठकोश ग्रोअज पान छलो/जरा छलनय वन्दकिय दादी/बुजू न्येन्द्रि बुनि छासुलो(वसंतकालीन पर्व पर गाए जाने वाला लोकगीत)
(२) पोशपोजाये वेल हे वोत/कर्मपम्पोश सोन लबिमन्ज आवा/स्वर्गच पूजाये वेल है वोत( वर्षागीत)
ब्रज लोकगीत= भतइया आयौ आंगन में बैठों दिल खोल/हुहर लायो अशर$फी लायौ रुपया लायौ भौत/सास हमारी यों उठ बोली देखौ थैलीखोल/ खोटे तौ नाय ओहो रे नकली तो नाय...(आंगन में )हरवा लायो निकलस लायो, चूडी लायौ मोल/जिठनी हमारी यों उठ बोली, देखो डिब्बा खोल/नकली तो नांय फो रे,पालिश तो नांय(आंगन में)
भीलों का भारथ=ए गाडु सोरीन ऊपो रयो (२)/गाडु सोरीन ऊपो रयो हो....रा....झी/गुरु भेंमा रे पांडवन साआआर नोखें(२)/ए सारनो पूळो रे नोखवा लागा हो....रा...झी
हरियाणा=नाच-नाच मेरा दामण पाट्या/ हे री ताई तूं के और सिमा देगी/मैं तेरे घर नाचण आई
मराठी(राम जन्म का प्रसंग)=सात समिंद्राचं पानी/दसरथाच्या रांजनी/रामराय झाले तान्हे/कौसल्या बाळंतिनी
(२) सीता स्वयंबर का प्रसंग=शिवाच धनुष्य/सीतेनं केलं घोडं/रावणं आळा पुढं/देवाला पडलं कोड/रावनानं कोधंड/उचललं घाई घाई/रामाची सीता नार/याळा मिळायची नाही.
निमाडी लोकगीत =संजा बाई, संजा बाई सांझ हुई/जाओ संझा ! थारा घर जा/थारी माय मारेगी, कूटेगी, चांद गयो गुजरात/ हिरणी उगेगी,डुबेगी, हथनी का बडा-बडा दांत/थारी बईण डरेगी, कांपगी, कुतरा भुकड गली म र/ थारी माय दचदेगी, पटकेगी.(२) राखो राखो रे पाणी, बोलो असी वाणी/जे कामर मिसरी घुली,वाणी मिसरी वाली
बुदेली लोकगीत= गिर्री पे डोरी डार मोरी गुंइयाँ/ डार नोरी गुइयां डराव मोरी गुइयां/गिर्री पे डोरी त्रबहिं नीकी लागै/सोनन के घडेलना होय मोरी गुइयां.(प्रसव बाद कुएं पर पानी भरने जाते समय गाए जाने वाला गीत)
मिथिला (नागपूजा के समय) =पुरैनिक पत्ता, झिलमिल लत्ता/नागदह नागदह पसरल पुरनि/जल उतपन मेल पांचो बहिन/पांचों बहिन पांचों कुमारि/छोट देवी विषहरि बड उतफालि।
छत्तीसगढी लोकगीत=देखो $फुलगे चंदैनी गोंदा $फुलगे/एखर रुप रंग हा जिव मां,मिसरी साही घुरगे/एक $फूल मय तुमला देथंव/बबा ददा औ भाई/नानुक बाबू नोनी दुलौरिन/बहिनी अउ मोर दाई/ तुंहर दरस ला पाके, हमर सबके भाग हा खुलगे.(२) लउडी के चक लउडी भइया, लउडी म बांधे $फुँदरवा/हम तो जाथंन गोवर्धन खुंदाय बर,माता-पिता के दुलरवा.
बस्तर का लोकगीत=देवी गंगा, देवी गंगा, लहर तुरंगा/ हमरों भोजली रानी के आठौ अंग है (अहो देवी गंगा) पानी बिन बिजली, पवन बिन बारी/ सेवा बिन भोजली के हरषे हो रानी.
भोजपुरी=राति अँधियरिया, बाटी सूनि मोर सेजरिया/मोरे दिलवा में उठेला तू$फान/बोलैले सियार कुचकुचवा बहरवाँ/ रेउवाँ चिल्लात बाट?ं तालके किरनवाँ (२)धीरे बहा मोरी हे माता टँवसिया/लेइकै मोरी अँखियन के आँसू/जइसे मोरी माता $फुलवन के बहवावा/वैसे मोरे दिल के जलनिया मिटावा.
राजस्थान के लोकगीत=गाम गाम खेजडी नै गामेगाम गोगो/घोट पीवो अंतर छाल कालो हणे नी बोगो.
खेजडी=शमी वृक्ष/ घोट=पीसकर/कालो-सर्प/हणे=डसता है/बोगो=दो ओर मुंह वाला.
(२)समरुं माता शारदा, गवरी पुत्र गणेश/मणिधर $फणिधर गरलधर पन्नगनाथ महेश/करुं प्राथर्ना प्रेम थी, स$फल करो मुझ काज....(३) जय जयकार करई जोड/ऊभी मैदिनी ओलाओल/करे परिकम्मा देवे धोक/चढे नालेर,लगावे भोग...(३) गौर से गणगौर माता, खोल से किवाडी/बाहर ठाडी, थारी,पूजन वारी..
मेवाती(राज)=बन्ना है बन्नी को बडो चाव/चल दियो सिखर दुपहरी में/बन्ना जूता लायो सईं साज/ मोजा लायो दुपहरी में/बन्ना है, बन्नी को बड़ो चाव
कन्नौज=सुमिर सरसुती जगदम्बा को,औ गनपति के चरन मनाई/धरती माता तुमको ध्यावों, कीरती, सबसे बडी तुम्हार/कीरति ध्यावों उन वीरन की, पलटै प्रबल काल की चाल/धारैं लौंटें तरवारनि की,उनके झुकैं न ऊँचे भाल/अरि पन्नग पर पन्नगारि जस, तूटैं परे पराये काज/ पानी राखैं जनमभूमि का, राखैं जनम भूमि की लाज
डोगरी= नूं पुच्छदी ? सस्सू कोला/बाहर सपाई कीया रौहन्दे न/भंगा पुट्टे सथुरा पान्दे/सूंक सुट्टी सैई रौहन्दे न (बहू सास से पूछती है मां, बाहर सिपाही कैसे रहते हैं. सास कहती है, भांग के पौधे उखाडकार बिस्तर बिछाते हैं और नि:श्वांस लेकार सो जाते हैं.)
आदिवासी चकमा समुदाय का गीत=छोरा छोरी बील हावा जोर/हादो पान खिलक हील हावो(नदी-नाले और ताल-तलाइये भर जाने से जैसे मछलियां खुशी से नाच उठती है.मेरी सजनी ! वैसे ही तेरे हाथों से पान खा कर मेरा दिल नाचने लगता है.)
ओडिया लोकगीत=रंज हेइचि कि सज करुच मो माआमाने/रुष बसिचि कि बोध करुच मो माआमाने/कानिपणतरे बांधि रखिल मो माआमाने/एबे सबु स्स्स्पेह पासोरि देय मो माआमाने(आज तो कोई उत्सव नहीं है कि तुम मेरा सिंगार्कर रही हो, न मैं रूठी हूँ कि तुम मुझे मना रही हो. मुझे आंचल में छिपाकार रखती थी, अब सारा प्यार भूल गई हो.( वर आने से पहले कन्या स्नान करते समय मां से कह रही है.)
अरुणाचल=(नृत्य करते समय गाए जाने वाला लोकगीत)=पचि दोव से अने दने दोह/दुगो दोह से अने दने दोह/पचि साव से अने दने दोह/दुगो दोह अने धने दोह
असम (मजदूर का गीत) कोट मारा जेमन तेमन/पाता तोला टान/हाय यदुराम/$फाकि दिया आनिलि आसाम/चाहेब बले काम काम/बाबू बैले धररे आन/चार्दार बले लिबे पिठेर चाम/रे निठुर श्याम/$फांकि दिया आनिलि आसाम
बिलासपुर=(छ.ग.) जइसन जेकर दाई ददा, तेकर तइसन लइका/जयसन जेकर घर कुरिया, तइसन जेकर घर कुरिया,/तयसन तेकर $फइरका (कोरबा)=जेकर जसन दाई ददा, तेकर तसन लइका/जेकर जसन घर दुवार, तेकर तसन $फइरका.(रायगढ)=जेकर जैसेन घर दुवार, तेकर तैसन $फइरका/ जेकर जैसन दाई-ददा, तेकर तैसन लइका.
साभार रऊताही 2015

Monday 21 November 2016




बिलासपुर. रावत नाच महोत्सव 19 नवम्बर 2016 की झलकियांं

Wednesday 10 February 2016

बिलासपुर नवभारत में 38 वर्षों की सेवा उपरांत श्रीमती सुधा दिवसे आज 10 फरवरी 2016  को सेवानिवृत्त हुई इस अवसर पर कार्यालय की ओर से विदाई समारोह का आयोजन किया गया. जिसमें सभी कर्मचारी उपस्थित थे. इस अवसर पर श्रीमती सुधा दिवसे ने कर्मचारियों का मार्गदर्शन किया साथ ही उन्होंने कर्मचारियों को समय—समय पर नई टेक्नॉलाजी के साथ अपडेट होते रहने की भी सलाह दी.



बिलासपुर नवभारत में 38 वर्षों की सेवा उपरांत श्रीमती सुधा दिवसे आज 10 फरवरी 2016  को सेवानिवृत्त हुई इस अवसर पर कार्यालय की ओर से विदाई समारोह का आयोजन किया गया. जिसमें सभी कर्मचारी उपस्थित थे. इस अवसर पर श्रीमती सुधा दिवसे ने कर्मचारियों का मार्गदर्शन किया साथ ही उन्होंने कर्मचारियों को समय—समय पर नई टेक्नॉलाजी के साथ अपडेट होते रहने की भी सलाह दी.

बिलासपुर नवभारत में 38 वर्षों की सेवा उपरांत श्रीमती सुधा दिवसे आज 10 फरवरी 2016  को सेवानिवृत्त हुई इस अवसर पर कार्यालय की ओर से विदाई समारोह का आयोजन किया गया. जिसमें सभी कर्मचारी उपस्थित थे. इस अवसर पर श्रीमती सुधा दिवसे ने कर्मचारियों का मार्गदर्शन किया साथ ही उन्होंने कर्मचारियों को समय—समय पर नई टेक्नॉलाजी के साथ अपडेट होते रहने की भी सलाह दी.