Sunday 2 October 2011

लव-कुश की जन्म स्थली के रूप में विख्यात

तुरतुरिया में उत्खनन की मिली अनुमति
रायपुर, (छत्तीसगढ़). जिले में सिरपुर से उत्तर पूर्व में स्थित बार नवापारा की सुरम्य
पहाडिय़ों में स्थित तुरतुरिया बलमबी नाला के  किनार स्थित है. यहां की सुरम्य घाटी
छत्तीसगढ़ की घाटियों में से सबसे सुंदर है. नाले के दोनों किनारे में अनेक गुफाएं हैं तथा
सुंंदर जलप्रपात है. मंदिर के अवशेष तथा मूर्तियां जगह-जगह बिखरी पड़ी है. यहां पर
एक बहुत बड़ा ईंटों से निर्मित बुद्ध विहार है तथा 4 फुट ऊंची एक बुद्ध मूर्ति है. इसके
दाहिने किनारे पर सिर के पास बुद्ध बीज मंत्र अंकित है. एक चतुर्भुजी  विष्णु गणेश तथा
अन्य मूर्तियां छठवीं शताब्दी की प्रतीत होती है.
गुफाओं में मनुष्यों के निवास के प्रमाण
सिरपुर उत्खनन प्रभारी डॉ. अरूण कुमार शर्मा ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि यहां
मिली गुफाओं में मनुष्यों के रहने के निशान है. स्तूप के पास एक लाइन का शिलालेख है
जो दूसरी शताब्दी का प्रतीत होता है. एक मंदिर जो खंडहर हो चुका है, उसके गर्भगृह
तथा मंडप में चार स्तंभ खड़े हुए है. बलमबी नाला के उत्तरी भाग में ईंटों से निर्मित कई
टीले हैं सबसे बड़े टीले की लंबाई 36 मीटर तथा चौड़ाई 24 मीटर है. लोक कथा तथा
किवदंतियों के मुताबिक इसे वाल्मीकी जी का आश्रम कहा जाता है तथा इसे ही लव-
कुश की जन्म स्थली माना जाता है. खंडहरों तथा तुरतुरिया की स्थिति को देखते हुए यह
कहानी सच्ची मानी जा सकती है. परंतु असली स्वरूप पुरातात्विक प्रमाण मिलने पर ही
सामने आएगा. लिहाजा, इस बात को ही सामने रखकर यहां शीघ्र खुदाई प्रारंभ की
जाएगी. क्योंकि अरूण  कुमार शर्मा के नाम से 28 सितम्बर को दिल्ली सेंट्रल एडवाजरी
बोर्ड ऑफ आर्कियोलॉजी की स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में इसकी अनुमति मिल चुकी है.
अरूण कुमार शर्मा स्वयं इस स्टैंडिंग कमेटी के निर्वाचित सदस्य है. इस स्टैंडिंग कमेटी
का कार्यकाल 4 वर्ष का होता है.
छग के पौराणिक स्थलों के उत्खनन को प्राथमिकता
इस कमेटी में 5 चुने हुए सदस्य होते हैं राज्य शासन के संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग की
योजना है कि आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ में स्थित पौराणिक स्थलों का उत्खनन पहले
किया जाए  जिससे  छत्तीसगढ़ के पौराणिक कथाओं के प्रमाण से उन्हें जोड़ा जा सके.
इसी कड़ी में तुरतुरिया का उत्खनन पहला प्रयास है. इसके पश्चात बस्तर में कोरापुट के
पास स्थित पोडागढ़ जो नल राजाआें की राजधानी थी, वहां के उत्खनन का प्रस्ताव भेजा
जाएगा. इसी कड़ी में तीसरा स्थल होगा राजनांदगांव जिले में बम्लेश्वरी मंदिर के प्रसिद्ध
डोंगरगढ़ है. क्योंकि डोंगरगढ़ के उत्तर में स्थित पहाडिय़ों में ईंटों से निर्मित कम से कम
18 मंदिरों के अवशेष बिखरे पड़े है. जिनकी अति सुंदर हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म की
मूर्तियों को बाघ नदी के पास राष्ट्रीय राजमार्ग के एक पुल में सन् 1856 में लगा दिया
गया था. परंतु नया पुल बन जाने के बाद अरूण शर्मा के प्रयास में इनमें से 18 मूर्तियों को
पुल से निकालकर राजनांदगांव के संग्रहालय में प्रदर्शित कर दिया गया है. इसी कड़ी में
चौथा प्रयास अम्बिकापुर जिले में रामगढ़ की पहाडिय़ों में स्थित भारतवर्ष के सबसे पुराने
नाट्य मंडप के आसपास खुदाई करने का विचार है.
योग्यता व अनुभव के आधार पर मिलेगी उत्खनन की अनुमति
28 तारीख की मीटिंग में यह भी तय किया गया कि अब पद के अनुसार नहीं, योग्यता
और उत्खनन अनुभव के अनुसार पुरातत्ववेत्ता को उत्खनन की अनुमति दी जाएगी. चाहे
कोई कितने भी बड़े पद में बैठा हो, यदि उसके पास कम से कम 5 साल उत्खनन का
अनुभव तथा रिपोर्ट लिखने का अनुभव नहीं है तो उसे अनुमति नहीं दी जाएगी. इसी
आधार पर इस वर्ष करीब 35 आवेदन अमान्य कर दिए गए. राज्य शासनों को कहा गया
है कि उत्खनन आवेदन देने के पूर्व उस स्थल के आसपास गहन सर्वेक्षण कराया जाएगा
और उनकी रिपोर्ट बनाई जाए. राज्य शासन द्वारा इन्हीं नियमों का पालन किया जाएगा.
मल्हार में तीसरे वर्ष भी खुदाई जारी रहेगी
छत्तीसगढ़ के एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल बिलासपुर जिले में स्थित मल्हार में तीसरे
वर्ष भी खुदाई की जाएगी. इसका नेतृत्व भारतीय पुरा सर्वेक्षण की सबसे पुरानी उत्खनन
शाखा के पुरातत्ववेत्ता डॉ. एसके मिश्रा करेंगे. उम्मीद है कि तुरतुरिया में कम से कम तीन
वर्ष उत्खनन करना पड़ेगा. अगर राज्य शासन ने नियमों के अनुसार अनुभवी और योग्य
शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को मौका दिया तो आगामी वर्ष डोंगरगढ़ का भी प्रस्ताव भेजा
जाएगा. जिससे बिना समय गंवाए छग के पुरातात्विक वैभव को प्रकाश में लाया जा सके
और छग के इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में आने वाली पीढिय़ों के सामने पेश किया जा
सके.