सत्तर साल के हो चुके मुलायम सिंह यादव छोटे कद के जरूर है मगर एक जमाने  में अच्छे खासे पहलवान हुआ करते थे। अखाड़े में अपने से दुगुने कद के लोगों  को धोबी पाट दांव लगा कर चित कर दिया करते थे और कई दंगलों के वे विजेता  हैं। राजनीति में तो वे बहुत बाद में आए। इसके पहले एक स्कूल में पढ़ाया  करते थे। संयोग की बात यह है कि मेरी खेती और गांव ग्राम नगला सलहदी, ब्लॉक  जसवंत नगर, जिला इटावा में ही हैं और अब फाइव स्टार बन चुका भारत का एक  मात्र गांव सैफई सिर्फ एक कोस दूर है। उस जमाने में सैफई भी हमारे नगला  सलहदी की तरह बीहड़ी गांव था जहां किसी की छत किसी के आंगन के बराबर होती थी  और पानी की कमी दूर करने के लिए गंगा नहर बनाई गई थी। मुलायम सिंह उस  जमाने में साइकिल पर चलते थे जो अब उनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह हैं।  राजनीति में उनकी शुरूआत, उनका आधिकारिक जीवन परिचय कुछ भी कहे, सहकारी  बैंक की राजनीति से हुई थी। सैफई और नगला सलहदी दोनों का रेलवे स्टेशन बलरई  है जहां अभी कुछ साल पहले थाना बना है वरना रपट दर्ज करवाने के लिए जसवंत  नगर जाना पड़ता था। बलरई में सहकारी बैंक खुली। ये चालीस साल पुरानी बात है।  मास्टर मुलायम सिंह चुनाव में खड़े हुए और इलाके के बहुत सारे अध्यापकों और  छात्रों के माता पिताओं को पांच पांच रुपए में सदस्य बना कर चुनाव भी जीत  गए। उनके साथ बैंक में निदेशक का चुनाव मेरे स्वर्गीय ताऊ जी ठाकुर ज्ञान  सिंह भी जीते थे। चुनाव के बाद जो जलसा हो रहा था उसमें गोली चल गई। मुलायम  सिंह यादव और मेरे ताऊ जी बात कर रहे थे और छोटे कद के थे इसलिए गोली चलाई  तो मुलायम सिंह पर गई थी मगर पीछे खड़े एक लंबे आदमी को लगी जो वहीं ढेर हो  गया। इस घटना का वर्णन मुलायम सिंह यादव की किसी भी जीवनी में नहीं  मिलेगा। सहकारी बैंक में उस समय पचास साठ हजार रुपए होंगे। तीन लोगों का  स्टाफ था। चपरासी और कैशियर एक ही था। मैनेजर पार्ट टाइम काम करता था और  निदेशकों की तरफ से नियुक्त एक साहब लेखाधिकारी बनाए गए थे जो चूंकि बैंक  में सोते भी थे इसलिए चौकीदारी का भत्ता भी उन्हें मिलता था। इसके बाद  मुलायम सिंह जसवंत नगर और फिर इटावा की सहकारी बैंक के निदेशक चुने गए।  विधायक का चुनाव भी सोशलिस्ट पार्टी और फिर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से लड़ा  और एक बार जीते भी। स्कूल से इस्तीफा दे दिया था। पहली बार मंत्री बनने के  लिए मुलायम सिंह यादव को 1977 तक इंतजार करना पड़ा जब कांग्रेस विरोधी लहर  में उत्तर प्रदेश में भी जनता सरकार बनी थी। 1980 में भी कांग्रेस की सरकार  में वे राज्य मंत्री रहे और फिर चौधरी चरण सिंह के लोकदल के अध्यक्ष बने  और विधान सभा चुनाव हार गए। चौधरी साहब ने विधान परिषद में मनोनीत करवाया  जहां वे प्रतिपक्ष के नेता भी रहे। आज मुलायम सिंह यादव धर्म निरपेक्षता के  नाम पर भाजपा को उखाड़ फेकना चाहते हैं। लेकिन पहली बार 1989 में वे भाजपा  की मदद से ही मुख्यमंत्री बने थे। उस समय लाल कृष्ण आडवाणी का राम जन्मभूमि  की आंदोलन और उनकी रथ यात्रा चल रही थी और मुलायम सिंह ने घोषणा की थी कि  वे यात्रा को किसी हाल में अयोध्या नहीं पहुंचने देंगे। लालू यादव ने उत्तर  प्रदेश पहुंचने से पहले ही आडवाणी को समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया।  विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिर गई और मुलायम सिंह यादव ने चंद्रशेखर के  जनता दल समाजवादी की सदस्यता ग्रहण की और कांग्रेस की मदद से मुख्यमंत्री  बने रहे। कांग्रेस ने अप्रैल 1991 में समर्थन वापस ले लिया। उत्तर प्रदेश  में मध्याबधी चुनाव हुए और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री नहीं रह पाए। उनकी जगह  कल्याण सिंह ने ले ली। सात अक्तूबर 1992 को मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी  पार्टी बनाई। कम लोगों को याद होगा कि 1993 में मुलायम सिंह यादव बहुजन  समाज पार्टी के साथ मिल कर उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लड़े थे। हालाकि  यह मोर्चा जीता नहीं लेकिन भारतीय जनता पार्टी भी सरकार बनाने से चूक गई।  मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस और जनता दल दोनों का साथ लिया और फिर  मुख्यमंत्री बन गए। उस समय उत्तराखंड का आंदोलन शिखर पर था और  आंदोलनकारियों पर मुजफ्फरनगर में गोलियां चलाई गई जिसमें सैकड़ों मौते हुई।  उत्तराखंड में आज तक मुलायम सिंह को खलनायक माना जाता है। जून 1995 तक वे  मुख्यमंत्री रहे और उसके बाद कांग्रेस ने फिर समर्थन वापस ले लिया। 1996  में मुलायम सिंह यादव ग्यारहवी लोकसभा के लिए मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से  चुने गए थे और उस समय जो संयुक्त मोर्चा सरकार बनी थी उसमें मुलायम सिंह भी  शामिल थे और देश के रक्षा मंत्री बने थे। यह सरकार बहुत लंबे समय तक चली  नहीं और सच यह है कि मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने की भी बात चली  थी मगर लालू यादव ने इस इरादे पर पानी फेर दिया। इसके बाद चुनाव हुए तो  मुलायम सिंह संभल से लोकसभा में लौटे। असल में वे कन्नौज भी जीते थे मगर  वहां से उन्होंने अपने बेटे अखिलेश को सांसद बना दिया। अब तक मायावती  मुलायम सिंह यादव की घोषित दुश्मन बन चुकी थी। 2002 में भाजपा और बहुजन  समाज पार्टी ने मायावती के साथ मिल कर सरकार बनाई जो डेढ़ साल चली और फिर  भाजपा इससे अलग हो गई। मुलायम सिंह यादव तीसरी बार उत्तर प्रदेश के  मुख्यमंत्री बने और विधायक बनने के लिए उन्होंने 2004 की जनवरी में गुन्नौर  सीट से चुनाव लड़ा जहां वे रिकॉर्ड बहुमत से जीते। कुल डाले गए वोटों में  से 92 प्रतिशत उन्हें मिले थे जो आज तक विधानसभा चुनाव का रिकॉर्ड है।  मुलायम सिंह यादव ने लंबा सफर किया है, बार बार साथी बदले हैं, बार बार  साथियों को धोबी पाट लगाया है मगर राजनीति वे दंगल की शैली में ही करते  हैं। अब उनका अखाड़ा पूरा देश है और इस अखाड़े में उनका उत्तराधिकारी बनने की  प्रतियोगिता भी शुरू हो गई है। उत्तराधिकारियों की कमी नहीं हैं क्योंकि  मुलायम सिंह यादव परिवार का हर वह सदस्य जो चुनाव लड़ सकता है, राजनीति में  हैं और उत्तराधिकारी होने का दावेदार है।
आलोक तोमर
आलोक तोमर